By श्रेया शर्मा
बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोई
जो दिल खोजा आपना, मुझसे बुरा न कोई
यूं ही खोजा मैंने ईश्वर को, मंदिर मस्जिद गुरुद्वारे में
पर भूल गया था मैं, वो तो बस्ते ही हैं हमारे में
मेरी आत्मा उनका रूप है, मैं खुद उनका निर्माण हूं
मेरी भक्ति में उनका नाम है, मैं खुद उनका वरदान हूं
उस वरदान को मैंने संजोया है, उस वरदान का मैं मालिक हूं
पर क्या मैं रख पा रहा, उसका खयाल बाखूबी हूं
उसने पहचान मुझे परोसी है, उस पहचान को बरकरार मुझे रखना है
उस वरदान का सुकून से जीना, वो भी मुझे देखना है
पर मैं ये क्या कर रहा हूं, उस वरदान को मैं खुदसे जाने दे रहा हूं
मैं बदल रहा हूं, अपने वजूद को ही मैं खत्म कर रहा हूं
ज़िंदगी तो ये मेरे हाथ में थी ना, इस कहानी का तो मैं लेखक था ना
मर्ज़ी तो मेरी ही चलनी चाहिए थी ना, तो फिर ये क्या हुआ
फिर आखिर क्या बदला, इस दिल ने दिमाग के साथ क्यों किया झगड़ा
हां मुझे जिम्मेदारियां सौंपी गई , हां मुझसे उम्मीदें भी लगाई गई
पर वो किसके लिए था, मेरे लिए था ना
मुझसे था ना, फिर मैंने अपने आप को ही क्यों बदला
जब मैं ही बदल गया, मेरे हाथों से वो वरदान ही चला गया
वो वरदान जो मुझे सौंपा गया था, उस वरदान को ही मैंने खुद से अलग करदिया
ज़िंदगी तो मेरी थी ना, इस कहानी का लेखक तो मैं था ना
फिर क्यों मैंने अपने वजूद को खोने दिया, क्यों इस भीड़ में उसे शामिल होने दिया
निकलना चाहता हूं इस दलदल से, तो खुद से एक बार फिर मुझे मिलना होगा
मुझे मेरी कहानी का लेखक एक बार फिर बनना होगा, एक बार फिर से मुझे अपने आप से मिलना होगा
मुझे एक बार फिर से अपने आप से मिलना होगा!!!